द देवरिया न्यूज़,बीजिंग : चीन में करीब सवा दो करोड़ मुसलमान रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ी आबादी उइगर मुसलमानों की मानी जाती है। सरकारी सेंसरशिप के कारण उइगरों की सटीक संख्या सामने नहीं आ पाती, लेकिन यह बात अब दुनिया से छिपी नहीं है कि चीनी सरकार लंबे समय से उइगर समुदाय पर कड़े प्रतिबंध और उत्पीड़न करती आ रही है। अब हालात और गंभीर हो गए हैं, क्योंकि चीन के बाहर बसे उइगरों की मुश्किलें भी तेजी से बढ़ रही हैं।
चीन में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता बेहद सीमित रूप में दी जाती है। मस्जिदों के निर्माण से लेकर धार्मिक रीति-रिवाजों तक पर सख्त पाबंदियां हैं। शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों के लिए ये नियम और भी कठोर हैं। वर्ष 2017 से 2019 के बीच चीनी सरकार ने ‘पुनः शिक्षा’ के नाम पर करीब 10 लाख उइगरों को डिटेंशन कैंपों में बंद किया, जहां कई लोगों से जबरन मजदूरी कराए जाने के आरोप भी लगे।
कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ उइगर चीन से भागकर अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में शरण लेने में सफल रहे। लेकिन अब चीन इन उइगरों को वापस लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बना रहा है। कई देशों पर बीजिंग के प्रभाव के चलते उइगरों की जबरन वापसी के मामले सामने आ रहे हैं। फरवरी में थाईलैंड ने 40 उइगरों को चीन भेज दिया था, जबकि तुर्की में भी उइगरों पर दबाव बढ़ने के आरोप लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि वहां उनसे जबरन चीन वापसी से जुड़े फॉर्म भरवाए जा रहे हैं।
उइगरों की स्थिति को अमेरिका और यूरोप की सख्त होती प्रवासी नीतियों ने भी और कठिन बना दिया है। चीन यह प्रचार कर रहा है कि उइगरों को देश लौटने पर कोई खतरा नहीं है, इसलिए उन्हें शरणार्थी का दर्जा नहीं मिलना चाहिए। इसी तर्क के आधार पर कई देश उइगरों पर चीन लौटने का दबाव बना रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि उइगर मुसलमान अब न केवल चीन के भीतर, बल्कि विदेशों में भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी और चीन का बढ़ता दबाव उइगरों के भविष्य को और अधिक अनिश्चित बना रहा है।
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