द देवरिया न्यूज़,मनोरंजन : बॉलीवुड के दबंग खान सलमान खान 27 दिसंबर को 60 साल के हो जाएंगे। फिल्मों में अपनी दमदार मौजूदगी और रियल लाइफ में दरियादिल स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले सलमान की फैन फॉलोइंग देश ही नहीं, दुनिया भर में है। उनके प्रशंसक न सिर्फ उनकी फिल्मों बल्कि उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात जानने में दिलचस्पी रखते हैं।
कुछ समय पहले सलमान खान से जुड़ी एक ऐसी जानकारी सामने आई थी, जिसने उनके फैंस को चौंका दिया था। यह खुलासा उनकी एक गंभीर बीमारी को लेकर था। सलमान ने खुद बताया था कि वह ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया नाम की बीमारी से जूझ चुके हैं, जिसे मेडिकल भाषा में ‘सुसाइडल डिजीज’ भी कहा जाता है।
सलमान खान ने एक टीवी शो के दौरान बताया था कि इस बीमारी में चेहरे के एक हिस्से में अचानक बिजली के झटके जैसा असहनीय दर्द होता है। उन्होंने कहा कि यह दर्द इतना भयावह होता है कि इसे कोई भी अपने दुश्मन के लिए भी न चाहे। सलमान ने करीब साढ़े सात साल तक इस दर्द को सहा। हालत यह थी कि एक ऑमलेट खाने में भी उन्हें डेढ़ घंटा लग जाता था, क्योंकि दर्द के कारण चबाना तक मुश्किल हो जाता था।
क्या है ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया?
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया एक न्यूरोपैथिक बीमारी है, जो ट्राइजेमिनल नर्व को प्रभावित करती है। यह नर्व चेहरे से मस्तिष्क तक संकेत पहुंचाती है। इस बीमारी में चेहरे के एक तरफ तेज, चुभन भरा और बिजली के झटके जैसा दर्द उठता है। बात करना, खाना, मुस्कुराना, दांत ब्रश करना या चेहरे को छूना तक इस दर्द को ट्रिगर कर सकता है।
इसके लक्षण और कारण
इस बीमारी में दर्द कुछ सेकंड से लेकर कई मिनट तक रह सकता है और समय के साथ इसकी तीव्रता बढ़ सकती है। गाल, जबड़ा, दांत, मसूड़े या होंठ के आसपास दर्द महसूस होता है। मेयो क्लिनिक की रिपोर्ट के मुताबिक, अक्सर मस्तिष्क के पास किसी ब्लड वेसल का ट्राइजेमिनल नर्व पर दबाव पड़ना इसका मुख्य कारण होता है, हालांकि इसके और भी कारण हो सकते हैं।
कैसे मिली सलमान को राहत?
सालों तक दर्द झेलने के बाद सलमान खान ने विदेश जाकर इस बीमारी की सर्जरी कराई। यह सर्जरी करीब साढ़े आठ घंटे तक चली और इसे गामा नाइफ सर्जरी कहा जाता है। डॉक्टरों ने उन्हें बताया था कि इससे 20 से 30 प्रतिशत तक ही राहत मिलेगी, लेकिन सर्जरी के बाद सलमान को दोबारा वैसा असहनीय दर्द नहीं हुआ। सलमान खान की यह कहानी न सिर्फ उनके संघर्ष को दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि गंभीर से गंभीर बीमारी से भी हिम्मत और सही इलाज के जरिए जीत हासिल की जा सकती है।
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