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मांझी के बयानों से फिर सियासी हलचल, एनडीए से टकराव के संकेत

Published on: December 26, 2025
Politics again due to Manjhi's statements
द देवरिया न्यूज़,पटना : हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी एक बार फिर अपने बयानों को लेकर राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। हाल के दिनों में उनके तीखे और असहज बयान एनडीए के भीतर तनाव बढ़ाने वाले माने जा रहे हैं। सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि क्या मांझी एक बार फिर आत्मघाती राजनीतिक कदम की ओर बढ़ रहे हैं—कुछ वैसा ही, जैसा अतीत में उनकी मुख्यमंत्री पद की विदाई का कारण बना था।

भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप

गया में आयोजित पार्टी की सभा में मांझी ने एनडीए, खासकर भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने दो लोकसभा और एक राज्यसभा सीट देने का वादा किया था, लेकिन राज्यसभा की सीट नहीं मिली। मांझी ने दो टूक कहा कि अगर राज्यसभा सीट नहीं मिली तो वे मंत्रिपद छोड़ सकते हैं और जरूरत पड़ी तो एनडीए से अलग होने से भी पीछे नहीं हटेंगे।

100 सीटों की तैयारी का आह्वान

कुछ दिन पहले मांझी ने अपने बेटे और मंत्री डॉ. संतोष सुमन से 100 सीटों पर चुनाव की तैयारी करने को कहा। उन्होंने गठबंधन सहयोगियों पर अपनी पार्टी को कमतर आंकने का आरोप भी लगाया। इस बयान ने साफ संकेत दिया कि HAM(S) भविष्य की रणनीति में स्वतंत्र राह की संभावना को भी खुला रख रही है।

स्वतंत्र चुनाव की पुरानी चेतावनी

करीब तीन महीने पहले पार्टी अधिवेशन में मांझी ने जरूरत पड़ने पर स्वतंत्र चुनाव लड़ने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि जनसमर्थन उनका है, लेकिन टिकट किसी और को मिल जाता है—यह अब स्वीकार्य नहीं होगा।

विरोध और दबाव की राजनीति

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मांझी एक बार फिर विरोध और दबाव की रणनीति अपना रहे हैं। हालांकि, गठबंधन सहयोगी उनके बयानों को अक्सर पार्टी के भीतर अपनी बात रखने का तरीका मानकर गंभीरता से नहीं लेते। यही वजह है कि उनके तीखे बयान अक्सर दिनभर चर्चा में रहते हैं, लेकिन शाम तक उनका असर सीमित हो जाता है।

अतीत की परछाईं

2015 में मुख्यमंत्री रहते हुए दिए गए विवादित बयानों के कारण मांझी को पद छोड़ना पड़ा था। कमीशन और रिश्वत जैसे बयानों ने उनकी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। मौजूदा हालात में उनके ताजा बयान उसी दौर की याद दिला रहे हैं।

अब सवाल यह है कि क्या मांझी वाकई बड़ा राजनीतिक फैसला लेने जा रहे हैं, या यह महज गठबंधन में दबाव बनाने की रणनीति है—इसका जवाब आने वाले दिनों में साफ होगा।


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