बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नज़दीक आते ही चुनाव आयोग ने तैयारी का अंतिम चरण शुरू कर दिया है। इसी क्रम में चुनाव आयोग ने केंद्रीय प्रेक्षकों (Central Observers) को ब्रीफिंग दी और उनकी भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश साझा किए।
क्या है केंद्रीय प्रेक्षकों की भूमिका?
केंद्रीय प्रेक्षक चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किए जाते हैं।
ये अधिकारी मतदान केंद्रों से लेकर चुनावी खर्च तक हर पहलू पर नज़र रखते हैं।
शिकायतों का समाधान और स्थानीय प्रशासन के कामकाज की निगरानी भी इन्हीं की जिम्मेदारी होती है।
ये आयोग और ज़मीनी स्तर के प्रशासन के बीच सेतु का काम करते हैं।
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ब्रीफिंग में क्या कहा गया?
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य अधिकारियों ने बताया कि चुनाव में आचार संहिता के सख्त पालन पर ज़ोर रहेगा।
प्रेक्षकों को निर्देश दिया गया कि वे मतदान केंद्रों पर सुरक्षा, महिला मतदाताओं की सुविधा, विकलांगजन की मदद और तकनीकी व्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दें।
चुनावी खर्च की निगरानी, नकदी या शराब की अवैध आपूर्ति और मतदाताओं को प्रलोभन देने जैसी गतिविधियों पर नज़र रखने को कहा गया।
किसी भी गड़बड़ी या अनियमितता की स्थिति में तुरंत चुनाव आयोग को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया।
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बिहार का चुनावी परिदृश्य
बिहार विधानसभा की कुल सीटें: 243
नए विधानसभा का गठन 22 नवंबर 2025 तक अनिवार्य।
राज्य में महिला मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं और पिछले चुनावों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही है।
इस बार भी महिला मतदाता चुनावी समीकरण तय कर सकते हैं।
क्यों अहम हैं प्रेक्षक?
विश्लेषकों का कहना है कि बिहार का चुनाव हमेशा संवेदनशील माना जाता है।
अतीत में यहाँ आचार संहिता उल्लंघन, धनबल और बाहुबल के इस्तेमाल की शिकायतें बार-बार उठती रही हैं।
ऐसे में प्रेक्षकों की तैनाती से चुनाव आयोग का मकसद है कि हर वोट सुरक्षित और निष्पक्ष माहौल में डाला जाए।
✅ साफ है कि चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए प्रेक्षकों को कड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है, और आने वाले दिनों में जब चुनाव की तारीखें घोषित होंगी, तो इन प्रेक्षकों की भूमिका और भी अहम हो जाएगी।
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