बिहार पॉलिटिक्स अपडेट: बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही राज्य की राजनीति में सरगर्मी तेज हो गई है। इस बार की हलचल का केंद्र बने हैं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने संकेत दिए हैं कि वे आगामी चुनाव महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ने को तैयार हैं — मुख्य उद्देश्य भाजपा को सत्ता से बाहर रखना है।
🔹 महागठबंधन से संपर्क में हैं ओवैसी
ओवैसी ने मीडिया से बातचीत में कहा:
“हमने महागठबंधन के नेताओं से संपर्क किया है। हमारी इच्छा है कि भाजपा को सत्ता में आने से रोका जाए। हम हर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं, लेकिन साझा रणनीति के तहत गठबंधन बनाना बेहतर होगा।”
🔹 सीटों के बंटवारे पर फिलहाल चुप्पी
जब उनसे सीटों की संख्या को लेकर सवाल पूछा गया, तो ओवैसी ने कहा:
“फिलहाल सीटों की संख्या को लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हमारा मुख्य उद्देश्य धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करना है ताकि भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सके।”
🔹 AIMIM की बढ़ती मौजूदगी
AIMIM ने बिहार में 2019 और 2020 के चुनावों में सीमांचल क्षेत्र में प्रभाव दिखाया था।
ओवैसी की पार्टी ने कुछ क्षेत्रों में सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक ही नहीं, बल्कि युवाओं और हाशिये पर मौजूद तबकों में भी पकड़ बनाई है।
ऐसे में महागठबंधन को उम्मीद है कि AIMIM का साथ मिलने से सीमांचल में मजबूत पकड़ बनाई जा सकती है।
🔹 सियासी समीकरणों में बड़ा बदलाव संभव
अगर ओवैसी की पार्टी को राजद, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन में शामिल किया जाता है, तो यह कदम न केवल भाजपा के खिलाफ वोटों का बिखराव रोक सकता है, बल्कि सीमांचल जैसे इलाकों में सामाजिक समीकरणों को भी बदल सकता है।
हालांकि, AIMIM को गठबंधन में शामिल करने को लेकर कांग्रेस और वामपंथी दलों के कुछ वर्गों में असहजता देखी जा सकती है, क्योंकि AIMIM पर अक्सर वोट कटवा होने का आरोप लगता रहा है।
📌 निष्कर्ष:
असदुद्दीन ओवैसी के बदले रुख से बिहार की चुनावी राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। अगर AIMIM महागठबंधन का हिस्सा बनती है, तो यह एनडीए के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि विपक्षी दल ओवैसी की पहल को अवसर समझते हैं या जोखिम।
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