द देवरिया न्यूज़/कैनबरा: अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए 368 अरब डॉलर के AUKUS न्यूक्लियर पनडुब्बी समझौते को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। ऑस्ट्रेलिया की खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि इस मेगा-डील पर “जासूसी का खतरा” मंडरा रहा है और कई प्रतिद्वंद्वी देश इसके पीछे हो सकते हैं। आश्चर्यजनक रूप से, ऑस्ट्रेलियाई मीडिया रिपोर्टों में चीन के साथ भारत का भी नाम संदिग्ध देशों की सूची में आया है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ गई है।
AUKUS डील क्या है और इसके दो प्रमुख स्तंभ
ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर AUKUS मंच पर आठ परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के निर्माण का समझौता किया है—जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव को काउंटर करना है।
इस समझौते के दो प्रमुख हिस्से हैं:
स्तंभ I
अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को 3–5 वर्जीनिया क्लास SSN पनडुब्बियां देगा।
स्तंभ II
ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया मिलकर नई SSN-AUKUS पनडुब्बी विकसित करेंगे।
अमेरिका इस प्रोजेक्ट के लिए तकनीक उपलब्ध कराएगा।
ऑस्ट्रेलियाई नौसेना को 2040 के दशक की शुरुआत से पनडुब्बियां मिलने की उम्मीद है।
हालांकि यह डील 2021 में हुई थी, लेकिन अब तक प्रोजेक्ट में उल्लेखनीय प्रगति नहीं दिखी है। इस साल जून में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी औपचारिक समीक्षा कराई और अक्टूबर में आगे बढ़ाने की मंजूरी दी थी।
जासूसी की आशंका: चीन ही नहीं, भारत का भी जिक्र
ऑस्ट्रेलियाई अखबार द ऑस्ट्रेलियन की रिपोर्ट के मुताबिक, AUKUS सबमरीन प्रोजेक्ट के लिए योग्य इंजीनियरों और टेक्निकल विशेषज्ञों की भर्ती में लगभग 10 में से 1 आवेदन सुरक्षा के आधार पर खारिज किया गया है।
खारिज किए जाने की सबसे बड़ी वजहें:
आवेदकों के संदिग्ध विदेशी संबंध
डुअल सिटिजनशिप
चीन या भारत से जुड़े संबंध
ऑस्ट्रेलिया को इस प्रोजेक्ट में कम से कम 20,000 इंजीनियरों की जरूरत है, लेकिन अमेरिका के कड़े ITAR (International Traffic in Arms Regulations) कानून और सख्त सुरक्षा जांच के कारण भर्ती प्रक्रिया कठिन हो गई है।
ASIO की चेतावनी: फर्जी जॉब पोस्ट के जरिए संवेदनशील जानकारी लीक कराने की कोशिश
ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा खुफिया संगठन (ASIO) के प्रमुख माइक बर्गेस ने बताया:
विदेशी एजेंसियां LinkedIn जैसी साइटों पर फर्जी जॉब पोस्ट डालकर रक्षा विशेषज्ञों को निशाना बना रही हैं।
करीब 7,000 ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस प्रोफेशनल LinkedIn पर अपनी जानकारी साझा करते हैं।
इनमें से 400 से अधिक ने AUKUS प्रोजेक्ट में काम करने का ज़िक्र सार्वजनिक रूप से किया है।
इससे वे जासूसी नेटवर्क के आसान लक्ष्य बन गए हैं। पिछले एक साल में ASIO ने दर्जनों संदिग्ध आवेदनों और कई सिक्योरिटी क्लियरेंस को रद्द किया है।
भारत का नाम क्यों आया?—कतर जासूसी केस से जुड़ी तुलना
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में संदिग्ध देशों की सूची में भारत का नाम सामने आने से कई विशेषज्ञ हैरान हैं क्योंकि भारत और ऑस्ट्रेलिया:
QUAD के पार्टनर हैं
इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक रूप से सहयोगी हैं
मालाबार नेवल एक्सरसाइज में साथ काम करते हैं
रिपोर्ट में भारत के संदिग्ध नागरिकों की गतिविधियों के स्पष्ट विवरण नहीं दिए गए हैं, लेकिन इसे कतर जासूसी मामले से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों पर पनडुब्बी रहस्यों की जासूसी का आरोप लगा था। बाद में प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के बाद सभी को भारत वापस लाया गया।
इससे यह सवाल उठता है कि क्या:
जासूसी की कोशिश निजी एजेंसियों द्वारा हो रही है?
क्या विदेशी देशों की निजी फर्में रक्षा तकनीक चोरी करने की कोशिश कर रही हैं?
क्योंकि कतर केस में भी आरोपी अधिकारी सक्रिय नेवी का हिस्सा नहीं थे, बल्कि रिटायर होने के बाद विदेशी कंपनी के लिए काम कर रहे थे।
रणनीतिक असर: क्या भारत–ऑस्ट्रेलिया संबंधों में तनाव आ सकता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी रिपोर्टों का सीधा असर दोनों देशों के संबंधों और अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति पर पड़ सकता है।
यूरेशियन टाइम्स ने लिखा:
“अगर ये आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह भारत–ऑस्ट्रेलिया संबंधों और QUAD की सामरिक एकता को नुकसान पहुंचा सकता है।”
क्योंकि AUKUS प्रोजेक्ट सिर्फ सबमरीन निर्माण नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत में शक्ति संतुलन को प्रभावित करने वाला बड़ा रणनीतिक कदम है।
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