बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) से महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उसे मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन समस्या इसके समय (टाइमिंग) को लेकर है। कोर्ट ने पूछा कि जब राज्य में चुनाव नजदीक हैं, तब अभी ही वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू करने की क्या आवश्यकता थी?
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: प्रक्रिया नहीं, समय पर आपत्ति
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा,
“हमें आपकी प्रक्रिया से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यह प्रक्रिया अभी क्यों शुरू की जा रही है? यह समय उचित नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाया जाना है, तो उसके लिए उचित सुनवाई (Due Process) देना आवश्यक है।
🧾 चुनाव आयोग का पक्ष: आधार नहीं है नागरिकता का प्रमाण
इस मामले में चुनाव आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। आयोग ने यह भी कहा कि सिर्फ आधार डिटेल्स में अंतर या उससे जुड़ी असमानता के आधार पर किसी व्यक्ति को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जा सकता।
चुनाव आयोग के वकील ने कहा:
“किसी भी मतदाता का नाम बिना सुनवाई के सूची से नहीं हटाया जाएगा। यह एक सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत ही होगा।”
🗓️ विवाद की जड़: वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग
यह पूरा मामला बिहार में मतदाता सूची के संशोधन की टाइमिंग को लेकर उठा है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया कुछ खास समूहों को निशाना बनाकर की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या यह प्रक्रिया चुनाव से कुछ समय बाद भी पूरी नहीं की जा सकती थी?
न्यायमूर्ति ने कहा,
“आपके पास यह काम करने के लिए साल भर का समय होता है, लेकिन आपने चुनाव से ठीक पहले इसे क्यों शुरू किया?”
📌 सुनवाई में उठे अहम मुद्दे:
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क्या आधार को पहचान पत्र के तौर पर पूरी तरह स्वीकार किया जा सकता है?
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क्या वोटर वेरिफिकेशन चुनाव से कुछ समय बाद नहीं किया जा सकता?
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क्या चुनाव आयोग का यह कदम निष्पक्ष है या किसी खास वर्ग को प्रभावित करने के लिए?
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बिना सुनवाई के नाम काटे जाने की स्थिति से कैसे निपटेगा आयोग?
🔍 क्या है अगला कदम?
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नहीं सुनाया है लेकिन चुनाव आयोग को अपनी प्रक्रिया और टाइमिंग को लेकर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट इस बात को लेकर सतर्क है कि कोई भी मतदाता अनुचित रूप से वंचित न हो।
📣 राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी चर्चा को जन्म दिया है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए हैं जबकि आयोग अपने निर्णय को नियमों के दायरे में उचित बता रहा है।
🧾 पृष्ठभूमि:
बिहार में 2025 के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में मतदाता सूची का रिवीजन एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है, खासतौर पर जब यह संशोधन आधार डाटा वेरिफिकेशन के आधार पर किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की इस सक्रियता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मतदाता सूची में किसी भी तरह का संशोधन निष्पक्ष, पारदर्शी और समयानुकूल होना चाहिए। अब निगाहें चुनाव आयोग की अगली दलीलों और सुप्रीम कोर्ट के संभावित निर्देशों पर टिकी हैं।
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