बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज़ है। इस मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रुख अपना लिया है। कई विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा है और 28 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई की तारीख तय की है।
🧾 सुप्रीम कोर्ट ने उठाए ये तीन अहम सवाल:
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आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड को पुनरीक्षण के दस्तावेज़ों में क्यों नहीं शामिल किया गया?
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यह प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले ही क्यों शुरू की गई?
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मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्ध न्यायिक सुनवाई कैसे सुनिश्चित की जाएगी?
⚖️ न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा:
“हम संविधानिक संस्था (चुनाव आयोग) को उनकी प्रक्रिया से नहीं रोक सकते, लेकिन समस्या प्रक्रिया की टाइमिंग से है। जो होना था, वह पहले होना चाहिए था — अब इसमें देर हो चुकी है।”
🧍♂️ EC की दलीलें और कोर्ट की आपत्तियां:
✅ EC का पक्ष:
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आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं, इसलिए उसे दस्तावेजों में शामिल नहीं किया गया।
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आयोग किसी मतदाता का नाम बिना सुनवाई के सूची से हटाने का इरादा नहीं रखता।
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भारत में नागरिकता जांच की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय की है।
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अनुच्छेद 326 के तहत, केवल भारतीय नागरिक को वोट देने का अधिकार है।
❌ कोर्ट की आपत्ति:
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यदि नागरिकता जांच करनी थी तो पहले करनी चाहिए थी, अब बहुत देर हो चुकी है।
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आधार को पूरी तरह नकार देना तर्कसंगत नहीं, क्योंकि यह कई सरकारी सेवाओं में स्वीकृत पहचान पत्र है।
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कोर्ट ने EC से पूछा, “आप बताइए यह प्रक्रिया कब होनी चाहिए? सिर्फ चुनाव से पहले क्यों?”
🔍 SIR बनाम SSR – क्या फर्क है?
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SSR (संक्षिप्त पुनरीक्षण): मतदाता सूची में छोटे बदलाव।
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SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण): पूरी सूची को फिर से खंगालना – बिहार में यह प्रक्रिया चुनाव से 4 महीने पहले शुरू की गई है।
🧑⚖️ “गलियों में मत जाइए, हाईवे पर रहिए”: कोर्ट की टिप्पणी
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस. ने तर्क दिया कि मतदाता सूची की अंतिम प्रति जून 2025 में तैयार हो चुकी थी। इस पर जस्टिस धूलिया ने EC को स्पष्ट दिशा में काम करने की सलाह देते हुए कहा:
“गलियों में मत जाइए, हाईवे पर रहिए। यानी प्रक्रिया सीधी, पारदर्शी और समय पर होनी चाहिए।”
👥 विपक्षी दलों की संयुक्त याचिका:
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कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (उद्धव), झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) सहित विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
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याचिका में “जनता को वोटिंग अधिकार से वंचित करने की कोशिश” का आरोप लगाया गया।
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प्रमुख याचिकाकर्ताओं में हैं: मनोज झा (राजद), महुआ मोइत्रा (टीएमसी), केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (NCP), डी. राजा (CPI), दीपांकर भट्टाचार्य (CPIML) आदि।
📆 अब आगे क्या होगा?
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 1 सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
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याचिकाकर्ताओं को उसके 1 सप्ताह बाद जवाब दाखिल करना होगा।
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28 जुलाई 2025 को फिर से सुनवाई होगी, जो इस मुद्दे की दिशा तय कर सकती है।
📌 निष्कर्ष:
बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण एक तकनीकी प्रक्रिया होते हुए भी राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस प्रक्रिया की निष्पक्षता, पारदर्शिता और समयबद्धता को लेकर कड़ी नजर रखी जा रही है।
अब सवाल यह है — क्या चुनाव आयोग समय से पहले पूरी प्रक्रिया पूर्ण कर पाएगा? और क्या मतदाताओं के अधिकार सुरक्षित रहेंगे?
28 जुलाई की सुनवाई से तस्वीर साफ होगी।
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