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कर्नाटक में फेक न्यूज पर सख्ती: मसौदा विधेयक में 7 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर उठे सवाल

Published on: June 30, 2025
कर्नाटक में फेक न्यूज
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बेंगलुरु ! कर्नाटक सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी समाचार और भ्रामक सूचनाओं पर लगाम कसने के लिए एक सख्त विधेयक का मसौदा तैयार किया है। इस ‘कर्नाटक गलत सूचना और फर्जी समाचार (निषेध) विधेयक’ में फेक न्यूज फैलाने पर सात साल तक की जेल और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब देशभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डीपफेक वीडियो और गलत सूचनाओं का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे सामाजिक तनाव और चुनावी गड़बड़ियों की आशंका पैदा हो गई है।

हालांकि, विधेयक को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकारों ने चिंता जताई है। उनका मानना है कि यह कानून क्रिएटिव कंटेंट, मीम्स और आलोचनात्मक अभिव्यक्ति पर सख्ती से लागू किया जा सकता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा हो सकता है।

क्या कहता है विधेयक?
मसौदा विधेयक में ‘फर्जी समाचार’, ‘नारी विरोधी कंटेंट’ और ‘अंधविश्वास फैलाने’ जैसी श्रेणियों को अपराध माना गया है, लेकिन इनकी स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
इसके क्रियान्वयन के लिए विशेष अदालतें और नियामक समिति गठित करने की बात कही गई है, जिससे मामलों की निगरानी और सुनवाई हो सके।

केंद्र के कानून से अलग राज्य की पहल
हालांकि केंद्र सरकार पहले से ही सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए कानूनों का उपयोग करती है, लेकिन कर्नाटक जैसे राज्यों ने अब अपने स्तर पर प्रादेशिक नियंत्रण लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की प्रतिक्रिया
नई दिल्ली स्थित इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के संस्थापक अपार गुप्ता, जिन्होंने इस विधेयक को सबसे पहले सार्वजनिक किया, ने कहा:

“गलत सूचना की व्याख्या बहुत हद तक व्यक्तिपरक है। इंटरनेट उपयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके दायरे में आ सकता है। यह कानून निर्दोष यूजर्स को भी मुश्किल में डाल सकता है।”

सरकार का बचाव
कर्नाटक के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि विधेयक को लेकर फैली अफवाहों को दूर किया जाना चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि:

“यह विधेयक अभी मसौदा है और इसे सार्वजनिक सलाह के लिए जारी किया जाएगा। इसका मकसद केवल डिजिटल सूचना अव्यवस्था को नियंत्रित करना है, ना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलना।”

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