बरहज (देवरिया)। जिले के बहुचर्चित मिहिर कांत तिवारी हत्याकांड में एक दशक बाद न्यायिक प्रक्रिया ने नया मोड़ लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बहुचर्चित मामले में पूर्व नगर पालिकाध्यक्ष उमाशंकर सिंह विशेन समेत पांच आरोपियों को बरी कर दिया है, जबकि सत्यप्रकाश जायसवाल की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा गया है।
यह फैसला कोर्ट ने 4 जुलाई को सुनाया, जिसने बरहज सहित जिले भर में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है।
क्या है पूरा मामला?
घटना बरहज के जयनगर स्थित विद्युत विभाग कार्यालय के पास कपरवार मार्ग की है, जहां दिनदहाड़े तत्कालीन सभासद मिहिर कांत तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मिहिर, कृष्णकांत तिवारी के पुत्र थे और क्षेत्र में अपने सामाजिक सरोकारों और सक्रियता के लिए जाने जाते थे।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मिहिर ने कच्ची शराब और अवैध गतिविधियों के खिलाफ लगातार आवाज उठाई थी, जिससे वह कुछ असामाजिक तत्वों के निशाने पर आ गए थे। हत्या के बाद पूरे बरहज नगर में तनाव और आक्रोश फैल गया था।
निचली अदालत का फैसला और हाईकोर्ट की सुनवाई
इस मामले में वर्ष 2021 में निचली अदालत (लोअर कोर्ट) ने सुनवाई करते हुए छह आरोपियों को दोषी माना था।
इनमें शामिल थे:
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उमाशंकर सिंह विशेन (पूर्व नगर पालिकाध्यक्ष)
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गनेश सिंह
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उदय प्रताप सिंह डिम्पू
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रामप्रवेश यादव उर्फ नागा
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मुरारी जायसवाल
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सत्यप्रकाश जायसवाल
अदालत ने सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
अब हाईकोर्ट ने 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है और कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले हैं।
वहीं, सत्यप्रकाश जायसवाल की सजा को बरकरार रखा गया है, क्योंकि अदालत को उसके खिलाफ मजबूत और प्रत्यक्ष प्रमाण मिले।
फैसले के बाद का माहौल
हाईकोर्ट का फैसला आते ही बरहज नगर में हलचल तेज हो गई।
बरी किए गए आरोपियों के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। कई जगह मिठाइयां बांटी गईं और समर्थकों ने इसे “सत्य की जीत” बताया। वहीं, मिहिर कांत तिवारी के परिजन और समर्थक इस फैसले से निराश दिखाई दिए।
परिजनों का कहना है कि वे शीर्ष अदालत (सुप्रीम कोर्ट) का दरवाजा खटखटाएंगे और न्याय की अंतिम लड़ाई जारी रखेंगे।
निष्कर्ष
बरहज के इस चर्चित हत्याकांड में हाईकोर्ट का फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी व्यापक असर डालने वाला है। जहां एक ओर कुछ लोगों को न्याय मिला, वहीं पीड़ित परिवार अब उच्चतम न्यायालय में पुनरावलोकन की तैयारी कर रहा है।
इस केस ने एक बार फिर दिखा दिया है कि न्याय प्रक्रिया लंबी जरूर हो सकती है, लेकिन हर मोड़ पर नए तथ्य और साक्ष्य उसकी दिशा तय करते हैं।
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