बिहार में चुनाव सुधार और प्रशासनिक दक्षता के उद्देश्य से राज्य निर्वाचन आयोग ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य में पहली बार 18 नगर आयुक्तों को उनके संबंधित शहरी क्षेत्रों के लिए जिला निर्वाचन पदाधिकारी (DEO) के रूप में नामित किया गया है। इन अधिकारियों को मतदाता सूची के पुनरीक्षण और मतदाता सत्यापन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है।
अब तक यह दायित्व आमतौर पर जिलाधिकारियों (DM) या उप जिलाधिकारियों (SDM) के पास होता था, लेकिन शहरी निकायों में मतदाता आधार को सुदृढ़ और पारदर्शी बनाने के लिए यह नई व्यवस्था लागू की गई है।
राज्य निर्वाचन आयोग के इस फैसले को शहरी क्षेत्रों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुचारु चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा सुधारात्मक कदम माना जा रहा है।
🔍 किन जिलों के नगर आयुक्तों को मिली जिम्मेदारी?
बिहार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पटना, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पूर्णिया, बेगूसराय, बिहारशरीफ, आरा, सासाराम, समस्तीपुर, छपरा, कटिहार, मोतिहारी, बेतिया, हाजीपुर, सीवान और नवादा जैसे प्रमुख शहरों के नगर आयुक्तों को आधिकारिक रूप से DEO नियुक्त किया गया है।
इन अधिकारियों को अब संबंधित शहरी क्षेत्रों में:
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मतदाता सूची का पुनरीक्षण कराना
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नए मतदाताओं का पंजीकरण कराना
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गलत प्रविष्टियों को सुधारना
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दोहरे नाम हटाना
जैसे अहम कार्य सौंपे गए हैं।
🛡️ चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर
राज्य निर्वाचन आयोग का मानना है कि नगर आयुक्तों के पास शहरी प्रशासन और डेटा मैनेजमेंट का व्यापक अनुभव होता है, जिसे चुनावी प्रक्रिया में शामिल कर मतदाता सूची को अधिक सटीक और त्रुटिरहित बनाया जा सकता है।
इसके अलावा, आयोग का यह भी मानना है कि यह नई व्यवस्था जमीनी स्तर पर चुनावी कार्यों में तेजी और पारदर्शिता लाने में मदद करेगी।
📅 मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान जल्द
इन नगर आयुक्तों की निगरानी में जल्द ही एक राज्यव्यापी मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान चलाया जाएगा। इस दौरान शहरी मतदाताओं से:
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अपने नाम और विवरण की पुष्टि
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गलत प्रविष्टियों की जानकारी देना
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फोटो और आधार लिंकिंग की जानकारी अपडेट करने के लिए कहा जाएगा।
📌 राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण
इस निर्णय को लेकर चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि इससे शहरी क्षेत्रों में फर्जी मतदाताओं पर लगाम लगाने और नई पीढ़ी के मतदाताओं को सूची में शामिल करने की प्रक्रिया को बल मिलेगा। साथ ही इससे नगर निगम चुनावों में भी प्रशासनिक सुदृढ़ता आएगी।
निष्कर्ष:
बिहार राज्य निर्वाचन आयोग का यह कदम चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। पहली बार नगर आयुक्तों को जिला निर्वाचन पदाधिकारी का जिम्मा देना न केवल शहरी प्रशासन की भूमिका को बढ़ाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि चुनावी सुधार अब प्रशासनिक प्राथमिकताओं में शुमार हो चुका है।
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